Monday, March 21, 2022

यूजीसी की गाइडलाइन में साहित्य चोरी और अकादमिक धोखाधड़ी रोकने की पहल

 शोध में साहित्य चोरी या किसी प्रकार की अकादमिक धोखाधड़ी पर रोक लगाने के लिए यूजीसी ने जांच प्रक्रिया को सख्त बनाने का प्रस्ताव दिया है। यूजीसी द्वारा प्रस्तावित नई गाइडलाइन में साहित्य चोरी और अकादमिक धोखाधड़ी पर रोक के लिए संस्थानों की अकादमिक परिषद या समकक्ष निकाय से अच्छी तरह विकसित सॉफ्टवेयर और गैजेट का इस्तेमाल करने को कहा है।

शोध कार्य के मूल्यांकन के लिए संस्था जहां स्थित है, वहां से बाहरी राज्य के एक प्रोफेसर और एक देश से बाहर के शिक्षाविद को (प्रोफेसर रैंक से कम न हों) नामित करने को कहा गया है। इसका मकसद व्यापक रूप से स्वीकार्य और उपयोगी शोध को बढ़ावा देना बताया जा रहा है। जिससे देश की अनुसंधान के क्षेत्र में साख बढ़े। शोध की गुणवत्ता के लिहाज से नियमों में कई बदलाव विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा प्रस्तावित किए गए हैं। ड्राफ्ट गाइडलाइंस पर 31 मार्च तक भागीदार पक्षों से राय मांगी गई है।

शोध कार्य की मौलिकता और कुछ ज्यादा फोकस वाले क्षेत्रों को चिन्हित करने का प्रस्ताव यूजीसी के नए ड्राफ्ट में है। नई गाइडलाइन में शोध में प्रवेश को लेकर भी कई प्रस्ताव किए गए हैं। इसके तहत चार साल के अंडर ग्रेजुएट कोर्स वालों को एक साल या दो सेमेस्टर वाले परास्नातक कार्यक्रम के बाद प्रवेश देने की बात है। साथ ही 60 फीसदी सीट नेट जेआरएफ छात्रों के लिए आरक्षित करने को कहा गया है।

संस्थान की अकादमिक परिषद साहित्यिक चोरी और अन्य रूपों में अकादमिक बेईमानी का पता लगाने के लिए एक तंत्र विकसित करेगी। इसके लिए अच्छी तरह से विकसित सॉफ्टवेयर और गैजेट का उपयोग सुनिश्चित किया जाएगा।

शोध कार्य को मूल्यांकन के लिए प्रस्तुत करते समय रिसर्च स्कॉलर की ओर से वचनबद्धता होगी कि उसका कार्य मौलिक है। इसका उपयोग संस्थान या बाहर के संस्थान में किसी रूप में पहले नहीं किया गया है। रिसर्च सुपरवाइज़र की ओर से मौलिकता प्रमाण पत्र भी इस बात की पुष्टि करेगा कि कोई साहित्यिक चोरी नहीं की गई है।




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